तयखाने में कैद एक पिहरवा


 तेरे तयखाने में कैद एक पिहरवा 

किसी तयखाने में इक पिहरवा कैद में है। पिहरवा पिया से मिलना चाहती है I पर  कैद करने वाला हर समय उस पर पहरा दे रहा है और दिन रैन उसके चक्कर लगा रहा था । पिहरवा का पिया ऊपर की मंज़िल पे पिहरवा के आने के इंतज़ार कर रहा है I पिया निचे लेने नहीं आ सकता और पिहरवा ऊपर मिलने नहीं जा पा रही  । बस तड़प बढ़ती है जा रही है, बिरहा बढ़ती जा रही है, बेचैनी बढ़ती जा रही है। कोई मिलने का रास्ता हो तो पिहरवा मिल पाए।इक रास्ता था, वो ये के पहरेदार की सांसे थम जाये । यु तो पिहरवा पहरेदार के मरने का भी इंतज़ार कर लेती पर रास्ता सिर्फ एक वो ये के पहरेदार का इधर उधर घूमना बंद हो, वो  बेहरकत हो जाये और पहरेदार की सांसे थमे पर वो जिन्दा हो, मृत न हो । पिहरवा इस रास्ते से अनजान बस अश्क़ बहाती,तड़पती , चिल्लाती। लम्बे अरसे तक यही चला। धीरे धीरे पहरेदार को उसकी रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी । पहरेदार को पिहरवा पे तरस आया पर वो भी इस रास्ते से अनजान और नहीं जानता के पिहरवा को उसके पिया से कैसे मिलाया जाये। पिहरवा को गम में देख के, गम में सुन के पहरेदार को बैराग आ गया । पहरेदार बैराग में हर रात पिहरवा को जगाता ,वो ये बोलता रहता के पिहरवा जा, पिहरवा जा, पिहरवा जा ..... पर पिहरवा मदहोश पहरेदार को नहीं सुन सकती, सिर्फ उसके जाने का एक है रास्ता वो ये के पहरेदार की सांसे उसके जीते जी थम जाये, और पहरेदार ये राज़ नहीं जानता । पहरेदार पिहरवा के गम में डूबा बस दोहराता रहा एक है धुन पिहरवा जा, पिहरवा जा, धुन दोहराते दोहराते पहरेदार की सांसे मद्धम होने लगी । एक दिन इसी धुन में पहरेदार बेहरकत हो गया और उसकी सांसे थम गयी । वो घडी आ गयी जिसका पिहरवा को इंतज़ार था । उसकी थमी सांसो और बेहरकती के बने बांध से वो गहरी खाई पार कर अपने पिया से जा मिली । वो पिया से मिल दिलशाद हुई । उसकी तमाम  हसरते थम गयी । अब और कोई चाह नहीं पिहरवा को । बस पिया से मिल के राहत और सुरूर हासिल कर वो ठहर गयी । कुछ पल में है पहरेदार की सांसे फिर से जो थमी थी धीरे धीरे चलने लगी और पिहरवा सिर्फ तब तक है पिया से मिल सकती थी जब तक के पहरेदार की सांसे थमी हो । पिहरवा को फिर से कैद में निचे लौटना पड़ा । पर पिहरवा इत्मीनान से लौटी, एक तो पिया तक जाने का रास्ता मालूम, दूसरा पहरेदार उसके वश में जो उसकी पिया से मिलने में मदत करेगा , इसलिए न कोई फ़िक्र न कोई गम , बस ख़ुशी , आनंद अवस्था , और फिर मिलने की चाह ।

 

इस कहानी में पिहरवा जो तयखाने में कैद है वो तयखाना हमारा जिस्म है, इंसा का जिस्म । पिहरवा हमारी आत्मा है जो परमात्मा से बिछड़ी बिरहा में है जिसे सकूं तब तक नहीं मिल सकता जब तक वो अपने पिया से न मिले, पहरेदार हमारी इन्द्रिय है  जो इधर उधर दुनियावी  हसरते हासिल करने के लिए भटक रही है   । पिया परमात्मा है । पिहरवा का पिया से मिलने की खाई का रास्ता हमारे जिस्म के रीढ़ की हड्डी के निचे के भाग से शुरू हो कर मस्तिष्क तक जाता है । और खाई पार करने का बांध जो की इन्द्रियों को बस में करना ताकि वो शिथिल हो जाये और सांसो के  धीरे धीरे थमने का अभ्यास सिमरन  योग बैराग से बना  है जिस पर चल कर आत्मा परमात्मा से मिल सकती है । यही हमारे मनुष्य जीवन का लक्ष्य है, हमारी आत्मा सिर्फ तब है सुकून पाती है जब परमात्मा से मिल पाती है वरना तमाम दुनिया की महफिले,दौलते, हसरते हासिल कर के भी इत्मीनान नहीं मिलता । सुकून और इत्मीनान बस तभी मिलता है जब शरीर की इन्द्रियों को वश में करके सांसो को मद्धम करके थमने का अभ्यास करते हुए हम आत्मा को परमात्मा से मिला दे, यही सच्चा धर्म है, यही परमात्मा से मिलने का मार्ग है, यही सत्य है ।


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